भाग -1- ठांय ठांय

रेलगाड़ी की गति धीमी होने लगी थी। शायद रेल्वे स्टेशन आने वाला था। हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा जैसे हम एक दूसरे को आश्वासन दे रहे हैं । हम दोनों खड़े हुए और धीरे-धीरे भीड़ को चीरते हुए हमारे कोच के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे ।जब तक हम गेट पर पहुंचे तब तक ट्रेन लगभग रुक सी गई थी। जैसे ही मैंने अपना कदम रेलवे प्लेटफार्म पर रखा तो अचानक मुझे किसी ने अपनी और खींच लिया और लगभग चीखते हुए बोला कि सुरेश भाग और अनीता का भी हाथ पकड़ ले। तब तक अनीता भी उतर चुकी थी मैंने उसका हाथ पकड़ा और वह महानुभाव हम दोनों को लगभग तेजी से खींचते अंदाज में दौड़ रहे थे । वह मेरे गांव के मोहल्ले के देबू चाचा थे। देबू उर्फ देवेंद्र शर्मा। मैंने झुंझला कर कहा,” अरे रुको देबू चाचा। क्या हुआ? क्या बात है ?” देबू चाचा के साथ तीन आदमी और थे । मैंने पूछा ही था कि इतने में गोली चलने की आवाज आई और देखा की चार पांच लोग बड़ी दूर से हमारी और दौड़ते हुए आ रहे हैं, जिनमें से दो लोगों के हाथ में पिस्तौल हैं। हालांकि उन्होंने हवाई फायर किया था जिससे भीड़ थोड़ी छंट जाए और वह हमें निशाना बना सके । मैं भी दुगने जोर से उनके साथ दौड़ पड़ा । हम रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार की बजाय पार्सल रूम वाले दरवाजे से होते हुए हम बाहर लपके। पीछे से लगातार फायरिंग की आवाज सुनाई दे रही थी । गेट से निकलते समय एक गोली मेरे बगल में लोहे के दरवाजे की ग्रिल से आकर टकरायी तब पता चला की देबू चाचा अचानक से भगवान बन के कैसे यहां पर प्रकट हुए हैं। हमारे मोहल्ले का ही एक लड़का महेश खाती, महिंद्रा जीप की ड्राइविंग सीट पर बैठा था, जो गाड़ी चलाने में निपुण था। गाड़ी पहले से ही चालू थी और महेश ने हमे हमें देखते ही गाड़ी को धीरे धीरे चलाना शुरु कर दिया। हम भी गाड़ी के साथ-साथ भाग रहे थे । गाड़ी के अंदर बैठे लोगों ने हमारा हाथ पकड़कर हमें अंदर खींच लिया और गाड़ी फर्राटा मारते हुए वीरमगढ़ की ओर बढ़ चली। यह लोग कुल मिलाकर छह आदमी थे। वीरम गढ़ से तो भागकर हम सूरजपुर जिला मुख्यालय आए ही थे और अब हमें देबू चाचा गोलियों की बौछार से बचाकर वापस वीरम गढ़ ही ले जा रहे थे । हमें वीरमगढ़ तो किसी भी हाल में नहीं जाना था, परंतु हमारे पास उपाय भी नहीं था। जब घटनाक्रम तेजी से घूमता है तो सोचने का मौका नहीं रहता । अगर मौत आपके सामने खड़ी हो तो पहले उससे बचना पड़ता है, चाहे आगे उससे भी बड़ा खतरा हो । आपके पास कोई विकल्प नहीं होता ।

मैंने कहा, “चाचा आप अचानक कैसे प्रकट हो गए ?” चाचा की बजाए मेरा दोस्त महावीर जाखड़ बोल उठा, “मुझे तेरे भागने का पता चला था और मैंने उन लोगों को तुम दोनों को मारने का प्लान बनाते हुए सुन लिया था । जब वे लोग गाड़ी की व्यवस्था करने गए थे, जिससे वह तुम्हें तुम्हारा पीछा कर सकें और तुम्हें पकड़ कर जान से मार सके। उसी दौरान मैं दौड़कर मोहल्ले मे आया और पीपल गट्टे पर बैठे मैंने वीरू भैया उर्फ वीरेंद्र शर्मा को बताया । देबू चाचा के साथ ही बैठे थे । उन्होंने हमें कुछ पूछा कि, “मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है । क्या बात है ? तो मैंने उन्हें भी सारी कहानी जल्दी जल्दी बता दी । देबू चाचा के दिमाग में आया कि लड़का कैसा भी हो, गलती भी कर ली हो, लेकिन जान से मारना तो बिल्कुल उचित नहीं है। वह हम लोगों को बोले, “चलो रे लड़कों सुरेश को बचाते हैं सुरेश हमारे ही मोहल्ले का लड़का है और अगर सुरेश की गलती भी हो तो हम उसे जान से तो कम से कम नहीं मारने देंगे। जो भी हो चाचा ने अपनी जीप निकाल कर तुरंत दौड़ा दी । देख लो कुछ ही मिनटों का अंतर रह गया वरना रेल्वे स्टेशन पर। हे भगवान सोचते हुए भी कंप कंपी आती है। क्या अंजाम होता तुम लोगों का ? “
पता नहीं मुझ पर क्या जोश जुनून छाया हुआ था, क्या नशा था कि मुझे मौत के नाम से कोई जरा सा भी डर नहीं लग रहा था व ना ही अनीता को। हमारे लिए जीवन और मृत्यु मायने नहीं रखते हों, परंतु मैं देबू चाचा का एहसानमंद हो चुका था। जब सारी दुनिया आप के विरुद्ध हो और एक भी व्यक्ति आपका साथ देने वाला नहीं हो तो ऐसे समय में यदि कोई आपका साथ देता है तो वह आपको भगवान के समान महसूस होता है।
कभी रास्ता खराब होने की वजह से हमारे जीप की गति धीमी होती थी तो पीछा करने वाली जीप नजदीक आते ही फायरिंग करना शुरू कर देती थी। सूरजपुर और वीरम गढ़ के बीच में लगभग तीन बार हम पर फायरिंग हुई परंतु भगवान की दया से किसी को भी गोली नहीं लगी । अब पीछा करने वाली जीप हमारी हमारे महेश की कुशल ड्राइविंग के कारण बहुत पीछे छूट चुकी थी । सड़क लगभग खाली थी और मैं सड़क को देखता देखता अपनी उस कहानी में खो गया जो भी वीरम गढ के कॉलेज से शुरू हुई थी।
मैं कॉलेज में पढ़ता था और अनीता भी मेरे साथ पढ़ती थी अनीता लगभग कॉलेज के खुलने के लगभग दस दिन बाद कॉलेज में आई थी और उसे देखते ही मेरी नजरें उस पर ठहर गई और मैं उसे एक तक देखा ही जा रहा था मैं वैसे तो बहुत शर्मीला लड़का था परंतु उस दिन सुध बुध खो बैठा था बस उसी समय मन में विचार उठा कि यदि जिंदगी गुजारनी है तो इसी के साथ वरना जीने का कोई मतलब नहीं है फालतू में ऐसे ही जिए जाओ तो जीवन व्यर्थ है । किशोरावस्था में तरह तरह की भावनाएं मन में आती है। सिर्फ स्वयं का विचार ही सही व अंतिम लगता है जबकि विचारों में लगातार विभिन्न प्रकार परिवर्तन होते रहते हैं।
किशोरावस्था 19 वर्ष में समाप्त हो जानी चाहिए वह वह कुछ लोगों के लिए लंबी हो कर 20 अथवा 30 वर्ष और किसी-किसी के लिए 40 वर्ष भी हो जाती है। और मजे की बात यह है कि किसी की किशोरावस्था मरते दम तक नहीं जाती। किशोरावस्था तूफानों में संघर्ष की अवस्था है जिसमें सैकड़ों विचार बनते हैं। बिगड़ते हैं और तरह तरह के मंथन होते रहते हैं। कभी कभार ऐसा लगता है कि मैं जो सोच रहा हूं वही अंतिम सत्य है फिर कुछ समय बाद रखता है कि नहीं इस बार जो पता चला है वही अंतिम सत्य है। यह प्रक्रिया चलती रहती है । किशोरावस्था में कुछ विचार ऐसे होते हैं जो समाज को यह हमारे बड़े बूढ़ों को यह हमारे साथियों को बड़े ही विचित्र दिखाई देते है जबकि किशोरों को परिपक्व लोगों के विचार अतार्किक वे पुरातन पंथी लगते हैं ।
जब तक अनीता मेरी आंखों से ओझल नहीं हो गई, तब तक मैं उसे देखता रहा और कुछ दूर जाने पर उसने भी पलटकर कनखियों से देखा कि आखिर यह लड़का कौन है जो मुझे इस तरह से देख रहा है वरना मेरे पिता से खौफ खाकर लड़के लोग तो मेरे आस-पास तक नहीं फटकते । अगर ऐसी खबर मेरे घर तक पहुंच जाती है तो शाम से पहले पहले उसकी अच्छी खासी धुनाई हो जाती है एक आध हड्डी भी टूट जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है।…….

दो-तीन बार कोशिश की कि मैं उसके रास्ते में खड़ा हो जाऊं और उसे देखूं और उसकी नजर भी मुझ पर पड़ जाए तो कुछ मामला आगे बढ़े I एक दिन अचानक ऐसा हुआ कि मुझे 440 वोल्ट का झटका लगा हुआ यह कि अचानक से अनीता मेरे सामने आई और बिना कोई औपचारिकता के सीधे बोली कि क्या सिर्फ छुप छुप के देखना ही है या बातें चीतें करके भूल जाना है या जिंदगी भर का साथ निभाना है ? हिम्मत है तो बोलो वरना अपना रास्ता नापो । बोलो क्या कहना है ? मैं भी संभलते हुए बोला “हां, मैं तुम्हें प्यार करता हूं और जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं । ” उसने आनंदित होते हुए कहा “यह हुई मर्दों वाली बात और कहा कि तुम भी मुझे पहली नजर में भा गए थे ।” उसके बाद हमारी कुछ दिनों तक मुलाकात होती रही परंतु इस बात का पता अनीता के घर वालों को लग गया अगर उसे फरमान सुनाया गया कि वह कॉलेज में मुझसे या किसी भी लड़के से किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं रखेगी और यदि उसने यह हरकतें जारी रखी तो उसका कॉलेज जाना बंद कर दिया जाएगा।
परंतु अगले ही दिन यह बात उसने मुझको बता दी और कहा कि वह मुझसे मिलना नहीं छोड़ेगी । अनीता की मुझसे मिलने की रिपोर्ट तुरंत उसके घर पहुंच गई और उसका कॉलेज में आना जाना बंद करवा दिया गया उस समय टेलीफोन नहीं हुआ करते थे I अनीता जब कुछ दिन नहीं आई तुम्हें बेचैन हो गया और उसकी एक सहेली से पता चला की उसे एक तरह से घर में नजरबंद कर दिया गया है और उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई है I अनीता की उसकी सहेली ने मुझे बताया की अनीता मेरे साथ घर से भाग जाना चाहती है I अनीता ने कहा की मुझे एक पल भी मेरे घर वाले के साथ नहीं रहना है और मुझे सिर्फ तुम्हारे साथ ही रहना है, चाहे मुझे कहीं भी ले जाओ। पर जो भी करना है तुरंत करो, I अनीता की सहेली के माध्यम से ही सभी बातों का आदान-प्रदान होता था और 3 दिन बाद हमने भागने का समय निश्चित कर लिया और तय किया रेलगाड़ी द्वारा जयपुर जाया जाए और वहां एक दोस्त के सहायता से अगला कार्यक्रम तय करने की सूची पर जब हम घर से भागे तो अनीता के परिवार वालों को इस बात का पता चल गया और उन्होंने हमारा पीछा किया तथा हमारी हत्या करने की कोशिश की I यह थी अब तक की कहानी।

हम जैसे तैसे बचकर देबू चाचा के घर पहुंचे तो अनीता के परिवार वालों की हिम्मत नहीं हुई वे हम दोनों को देबू चाचा के घर चले जाएं क्योंकि पूरा मोहल्ला हमेशा से देबू चाचा के साथ था। इसलिए अनीता के परिवार वाले अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए पुलिस को साथ लेकर आए तथा मुझे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और अनीता को उसके घर वाले अपने साथ ले गए । मुझ पर अनीता को बहला-फुसलाकर घर से भगाने तथा उससे अभद्रता करने के आरोप लगाए जिसके कारण मुझे जेल भेज दिया गया। फिर वह दिन भी आया जिस दिन अनीता को गवाही के लिए अदालत में बुलाया गया । अनीता ने वहां पर साफ साफ कहा कि वह अपनी मर्जी से मेरे साथ गई थी और वह बालिग है और जो भी निर्णय किया था वह हम दोनों ने मिलकर किया था ।

जज ने अनीता के पिता का पक्ष लेते हुए समझाने के लहजे मे अनीता से कहा कि “बेटी, मुझे तो कानून के हिसाब से ही निर्णय लेना होगा परंतु मैं आपको समझाना चाहता हूं। देखो, आप अंतरजातीय विवाह करना चाहते हो जो अभी जनसामान्य में समाज में मान्य नहीं है तथा न केवल आप दोनों के बल्कि किसी के भी हित में नहीं है, इसलिए आपको अपने पिता के साथ चले जाना चाहिए और पिता की बात माननी चाहिए। क्योंकि माता-पिता हमेशा अपने बच्चों की बेहतरी के लिए ही सोचते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं तथा उनके सुखद भविष्य के लिए ही यह निर्णय लेते हैं । अभी तुम्हें अपने अपने घर वालो के साथ चले जाना चाहिए और शान्तिपूर्वक कुछ दिन अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।” इस पर अपने स्तर अनीता ने अपनी पीठ जज को दिखाकर कहा “क्या पिता ऐसे होते हैं ?” मेरी आंखों में आंसू आ गए क्योंकि अनीता की पीठ जबरदस्त रूप से घायल थी और उस में जगह-जगह मवाद भी पड़ गया था। उसने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा कि “मेरे पिता ने मुझे कई बार बेरहमी से पीटा है और मेरे किसी भी घर वालों ने उन्हें रोकना तो दूर बल्कि उनका साथ दिया । मुझे किसी भी हालत मे मेरे घर वालों के साथ नहीं जाना बल्कि कृष्ण कुमार के साथ ही जाना है।” उसी के साथ ही रहना है। जज महोदय ने “जैसी तुम्हारी मर्जी” और उन्होंने मुझे रिहा कर दिया तथा अनीता को मेरे साथ जाने की इजाजत दे दी।
मेरे घर वाले, मेरे रिश्तेदार, उन्होंने भी मेरा साथ नहीं दिया I चाचा तथा कुछ मोहल्ले वालों की उपस्थिति में हमारी शादी करवा दी गई I चाचा ने कहा कि जब तक कि तुम्हारे रोजगार की व्यवस्था तथा अलग से किराए के मकान की व्यवस्था नहीं हो जाती है तब तक तुम बिना चिंता के हमारे साथ ही रहो। अब संकट आया कि कमाएंगे क्या और खाएंगे क्या? हम दोनों तो BA प्रथम वर्ष में पढ़ते थे। मेरा एक दोस्त रामचंद्र दिल्ली रहता था। मैंने उसे पत्र लिखकर मेरी सारी कहानी बताई और कहा कि अगर वह दिल्ली में मेरे लिए किसी रोजगार की व्यवस्था कर देगा तो मैं उसका एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा । मेरे पत्र का जवाब आया कि कृष्ण कुमार तुम अपनी पत्नी के साथ दिल्ली आ जाओ और मेरे यहां रहो और मेरे घर को अपना इधर समझो और जब रोजगार की व्यवस्था हो जाए तथा पर्याप्त कमाने लग जाओ तब अलग से घर ले लेना।

देबू चाचा से कुछ पैसे उधार हम दोनों दिल्ली चले गए। वहां पर मेरे दोस्त रामचंद्र ने मुझे निजी ट्रांसपोर्ट मैं एक छोटी सी नौकरी दिलवा दी। मैं वहां जी जान से और इमानदारी से अपना काम करने लगा और इस कारण मेरी पगार में धीरे-धीरे वृद्धि होने लगी और मैंने अलग से किराए का मकान ले लिया इस पूरी यात्रा में मेरी पत्नी जी जान से मेरा साथ दिया । वह मेरा पूरा ख्याल रखती थी। परंतु मैं धीरे-धीरे एक बात से बहुत पैसा परेशान रहने लगा था कि अगर मैं काम से आधा घंटा भी लेट आ जाऊं तो खूब प्रश्न पूछती थी। मेरे दो बच्चे हो गए थे घर का खर्चा बढ़ गया था जिसको मैनेज करना बड़ा ही मुश्किल होता था। मैं ओवर टाइम भी करता था तथा थका हारा जैसे ही घर पहुंचता तो वह लगातार प्रश्न पूछ लगती कि लेट क्यों हो गए ? वह फलां पड़ोसी तो जल्दी घर आ जाता है ? तुम कैसे नहीं जल्दी आ सकते ? मुझसे शादी क्यों की थी ? वगैरा-वगैरा । मैं घर को मैनेज करने की कोशिश करने के लिए वैसे ही परेशान रहता था और मेरी पत्नी के व्यवहार से जो कि उसके मेरे पति बहुत अधिक लगाव का ही परिणाम था मैं तनावग्रस्त रहने लगा था मैं धीरे-धीरे शराब पीने लगा ।

मुझे शराब की लत शायद इसलिए लग गई थी क्योंकि क्योंकि अनीता का मेरे प्रति जो बहुत अधिक प्यार है , वही प्यार मुझे अपने पैरों में बेड़ियों के समान लगने लगा था । वह मेरी हर छोटी छोटी बात पर नजर रखने लगी थी मुझे हर छोटी छोटी बात पर उसको सफाई देनी होती थी । मैंने खुद ट्रांसपोर्ट की कंपनी खोली थी इसलिए मेरा काम बढ़ गया था । मेरा बिजनेस बढ़ने लगा था । परंतु यदि मैं नहा रहा हूं या किसी अन्य काम में व्यस्त होता था और किसी कंपनी की रिसेप्शनिस्ट लड़की का फोन आ जाता था तो वह मुझसे बीस बीस सवाल करती थी कि यह लड़की कौन है ? इसमें तुम्हें क्यों फोन किया है? इसमें तुम्हें अभी फोन कर दिया है? तुम्हारे ऑफिस में भी कर सकती थी? इस लड़की से तुम्हारा कोई चक्कर तो नहीं है ? मेरी कसम खाओ मेरे सिर पर हाथ रख कर बताओ तुम्हारा उससे कोई चक्कर नहीं चल रहा है?
वह मेरा बहुत ज्यादा ही खयाल रखती थी । मेरे आगे पीछे घूमती रहती रहती थी । मुझ से एक मिनट भी अलग नहीं रहना चाहती थी। मैंने घर पर ही शराब पीना शुरू कर दिया था, जब से अनीता ने मुझसे कहा कृष्ण, बाहर शराब पीकर मत आया करो मेरे साथ ही रहा करो, यदि शराब पीनी है मेरे पास में बैठ करके पी लिया करो। मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा अपने साथ देखना चाहती हूं। अनीता खुद मेरे लिए गिलास में शराब डाल मुझे देती थी । कभी कभार उसे अजीब सा दौरा भी पड जाता है और उसकी गहरी नीले रंग की हो जाती है । उस दौरान उसकी एक छोटी सी बात को भी मना नहीं कर सकता । वह बड़ी बड़ी धमकियां देने लगती है । कहने लगती है कि कि पिछले जन्म मे हम नाग नागिन का जोड़ा थे व ये भी कहती है कि अगर मैंने उसे छोड़ दिया तो वह मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी । यह सब दो से तीन दिन तक चलता रहता था ।

मैं इतना तनाव व्यस्त हो गया था एक दिन मोटरसाइकिल पर ऑफिस जाते हुए मुझे ध्यान ही नहीं रहा और मैं एक ट्रक से टकरा गया मैं बुरी तरह घायल हो गया मेरे सीन कई हड्डियां टूट गई। चेहरे पर तो चोट नहीं आई परंतु एक पैर की हड्डी टूटी और एक साथ की हड्डी टूटी ।गनीमत थी कि मैं बच गया था इस बड़ी दुर्घटना से पहले भी मैं तीन-चार बार छोटी मोटी दुर्घटना से गुजर चुका था । अब बच्चे बड़े होने लगे हैं । मेरी बीवी मुझ से बेइंतहा प्यार करती है और मेरे हर पल का हिसाब रखती है । दिन मे बार बार फोन करके पूछती है कि कहां पर हो ? किसके साथ हो ? क्या कर रहे हो ? कब घर पहुंच रहे हो ? देरी कैसे हो गई ? रास्ते मे कौन मिल गया था ? ऐसी क्या ज़रूरी बात थी ? अभी लड़कियों जैसी आवाज कैसे आ रही है ? किस चुड़ैल के साथ बैठे हो ? इतना कितना काम है कि समय पर घर नहीं आ सकते? ये …. वो…. ना जाने क्या क्या ? अब मुझे पता ही नहीं चलता कि कब घर से ऑफिस से घर व घर से ऑफिस पहुंच गया । मैं कितना भी ध्यान रखूं फिर भी छोटी मोटी चोट लग ही जाती है । कुछ भी हो , वो रात को मेरे पास बैठ कर मुझे नमकीन के साथ शराब परोसती है जिससे मेरा तनाव कम हो और मूड सही हो जाए । फिर प्यार से खाना खिलाती है । पिए जा रहा हूं और अनीता के प्यार मे यंत्रवत जिये जा रहा हूँ ।

Is Extreme love a misfortune? Part -1 – Firing
The speed of the train was slowing down. Perhaps the railway station was about to arrive. We both looked at each other as if we were giving assurance to each other. The two of us stood up and slowly proceeded towards the door of our coach, ripping the crowd. The train was almost stopped by the time we reached the gate. As soon as I made my move on the railway platform, suddenly someone pulled me further and almost screamed that Suresh run and Anita should also take hold. By then Anita had also landed andI held her hand and she was running in a manner almost dragging the two of us fast. He was the Debu uncle of my village locality. Debu / Devendra Sharma. I annoyed and said, “Hey wait Debu uncle. What happened? What’s the matter?” Debu uncle was accompanied by three other men. I had asked that there was a sound of firing and saw that four five people were coming from far away and running, out of which two people have pistols in their hands. However, he fired air so that the crowd would get a bit trimmed and he could target us. I also ran with him twice as hard. We rushed out through the parcel room door instead of the main entrance to the railway station. The sound of continuous firing was heard from behind. While coming out of the gate, a bullet hit the grill of the iron door next to me and it was then discovered that Debu Uncle suddenly appeared here as a god. Mahesh Khati, a boy from our locality, was sitting on the driving seat of the Mahindra Jeep, who was skilled in driving. The car was already operational and Mahesh started driving the vehicle slowly as soon as we saw us. We were also running along with the car. The people sitting inside the car, holding our hand, pulled us in and the car started moving towards Veeramgarh beating.
These people were six men in total. We had already come to Surajpur district headquarters after escaping from Veeram Garh and now Debu Uncle was taking us back to Veeram Garh after saving him from a volley of bullets. We did not have to go to Veeramgarh under any circumstances, but we did not have any solution. When events turn fast, there is no chance to think. If death is standing in front of you, then first one has to avoid it, even if there is a bigger danger ahead. You do not have a choice. I said, “Uncle, how did you suddenly appear?” My friend Mahavir Jakhar, instead of uncle, said, “I came to know of your escape and I heard those people making plans to kill you both. When those people went to arrange the car, he would follow you I could catch you and kill you. At the same time, I came running to the locality and told Veeru Bhaiya alias Virendra Sharma, sitting on the peeple gate. Debu was sitting nearby. He asked us something, “I feel something wrong. What is the matter? So I also told him the whole story very quickly. Debu uncle came to mind that no matter what the boy is, he may have made a mistake but It is not right to kill. He said to us, “Let’s save the boys Suresh, Suresh is our own boy and if Suresh is also at fault, we will not let him die at least. Whatever happened, uncle got out his jeep and immediately ran. Look at the difference of a few minutes or else at the railway station. O God, I am trembling when it comes, even while thinking. What would happen to you? ” I do not know what passion was obsessed over me, what was the intoxication that I was not afraid of death nor did Anita. Life and death may not matter to us, but I was grateful to Debu Chacha. When the whole world is against you and not a single person is going to support you, then in such a time if someone supports you, then he feels like God. Sometimes the speed of our jeep was slow due to bad road, then the chasing jeep started firing as soon as it came close. We were fired about three times between Surajpur and Veeram Garh but no one was shot by the mercy of God. Now our chased jeep was left behind due to our Mahesh’s efficient driving. The road was almost empty and I was lost in my story of looking at the road which started from the college of Veeram Garh.I used to study in college and Anita was also studying with me. Anita came to the college almost ten days after the college opened and my eyes stopped on seeing her and I was going to see her till one day. There was a shy boy, but on that day Sudh was lost, just at the same time the thought arose in his mind that if life is to be spent then there is no point of living with it or else living like this unnecessarily, then life is meaningless. Different types of emotions come to mind in adolescence. Only the idea of oneself seems to be correct and final, while the thoughts are constantly changing in different ways.
Adolescence should end in 19 years, it becomes longer for some people, 20 or 30 years and for some it is also 40 years. And the interesting thing is that one’s adolescence does not go till death.Adolescence is a state of conflict in storms in which hundreds of thoughts are formed. They deteriorate and there are different types of churns. Sometimes it seems that what I am thinking is the ultimate truth, then after some time it keeps that, what has been revealed this time is the ultimate truth. This process goes on. In adolescence, there are some ideas that the society finds it very bizarre to our elders, to our peers, while to teenagers, the views of mature people seem irrational.
Until Anita disappeared from my eyes, I kept looking at her and when I went away, she also turned around and saw with an ear that after all who is this boy who is looking at me this way, otherwise the boys are scared of my father. So do not even get around me. If such news reaches my house, then before the evening, it gets cleaned up a lot before it breaks even if there is a big bone. continued…….. wait for Sunday
